क्या था वो जो हो गया
उम्र का तकाज़ा
या फिर अपना जनाज़ा,,,
इतने तो नायाब नहीं थे हम
जो ज़िन्दगी ने हमें
मौत के बेशकीमती तोहफों से नवाज़ा,,,
पहला मौत का तोहफा तन्हाई थी,,,
ना कुछ इच्छा थी ना ही किसी से रुसवाई थी,,,
पर खुदा को ये गवारा कहाँ था
उसने मुझे मौत का दूसरा तोहफा पेश किया,,,
ना जाने क्यूँ एक दिलबर को उसने भेज दिया,,,
जब आ गया मेरा महबूब मेरे पास,,,
तो मौत के तोहफे में भी जगी
ज़िन्दगी जीने की आस,,,
अब वो तोहफा
मुझे अजीज लगने लगा,,,
सबकी नज़रों में मैं
बत्तमीज़ बनने लगा,,,
मुझे खुश देखकर फिर से खुदा का दिल मचलाया,,,
तभी उसने मुझे
मौत के तीसरे तोहफे से मिलवाया,,,
तीसरे तोहफे का नाम था बेचैनी
जो ना जाने क्यूँ बढ़ने लगी,,,
चन्द लम्हा गुफ़्तगू ना हो उससे
तो जैसे जाँ निकलने लगी,,,
मौत का ये तोहफा
यूँ तो बड़ा नायाब था,,,
पर उस खुदा के पास
मेरे हर तोहफे का हिसाब था,,,
बोला खुदा फिर मुझसे
की बहुत मिल लिया अपने दिलदार से
अब तेरे अगले तोहफे का मुकम्मल समय आ गया,,,
बेचैनी बहुत बढ़ा ली तूने
अब तो बेरुखी का माकूल
समय आ गया,,,
इस तरह पेश आने लगा मेरा दिलदार मुझसे
की मुझे खुद से नफरत सी होने लगी,,,
उसकी बेरुखी बढ़ती रही हर पल
और मेरे दिल की मानो कसरत सी होने लगी,,,
अब खुदा ने कहा
तेरा मेहबूब तो बस एक बहाना था,,,
तुझे तो तेरे बेशकीमती तोहफे “दर्द “से मिलवाना था,,,
तेरा ये तोहफा अकेला नहीं आएगा,,,
साथ में अपने बहुत अश्रु भी लाएगा,,,
जिसे ज़िन्दगी मान बैठा था
वो ज़िन्दगी बनकर ज़िन्दगी भर रुलाएगा,,
और फिर आखिर में तू मौत की फरियाद लगाएगा,,,
तब तू कहेगा की
क्या था वो जो हो गया
उम्र का तकाज़ा
या फिर अपना जनाज़ा,,,
इतने तो नायाब नहीं थे हम
जो ज़िन्दगी ने हमें
मौत के बेशकीमती तोहफों से नवाज़ा,,,
इतने तो नायाब नहीं थे हम
जो ज़िन्दगी ने हमें
मौत के बेशकीमती तोहफों से नवाज़ा,,,!!!
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