सोने की नन्दा नदी
हमारा भारत देश प्राचीन समय से ही सोने की चिड़िया के नाम से जाना जाता है। पर क्या आप यह जानते हैं कि वर्तमान समय में जहाँ भारत जैसे देश में सोने की कीमत आसमान छू रही है, वहीं हमारे भारत देश में एक ऐसी नदी है जिसमें जमानों से पानी के साथ सोना बहता चला आ रहा है। जी हां यह बात जानकर आप आश्चर्यचकित तो होंगे ही साथ ही साथ इस बात पर यकीन भी नहीं कर पा रहे होंगे, परन्तु यह बात बिल्कुल सच है।
वैसे तो हमारे भारत देश में बहुत सी नदियां बहती हैं और हर एक नदी अपनी एक अलग कहानी व एक अलग मान्यता के लिए जानी जाती है। जहाँ एक ओर हम गंगा नदी को सबसे पवित्र नदियों में सर्वोत्तम स्थान पर रखते हैं, वहीं दूसरी ओर भारत देश में कई ऐसी नदियां व पर्वत हैं जिनके रहस्य को आज तक वैज्ञानिक खोज नहीं पाए हैं।
नदी जहाँ बहता है सोना
इन्हीं रहस्यमयी नदियों में से एक है नंदा नदी, यह एक ऐसी नदी है जो सोना उगलती है इसलिए इसे स्वर्णरेखा नदी के नाम से भी जाना जाता है। झारखंड की राजधानी रांची से लगभग 15 किलोमीटर दूर एक आदिवासी इलाके के रत्नगर्भा में यह स्वर्णरेखा नदी बहती है। जिसे सोने की नदी भी कहा जाता है। यहां रहने वाले आदिवासी लोग इसे नंदा नदी के नाम से पुकारते हैं। इस नदी की लम्बाई लगभग 474 किलोमीटर है। यह नदी अपने उद्गम स्थल से निकलने के बाद किसी भी क्षेत्र की अन्य नदियों में जाकर नहीं मिलती बल्कि नंदा नदी सीधे बंगाल की खाड़ी में गिरती है।
इतिहास
इस नदी का नाम स्वर्णरेखा पड़ने की वजह नदी की रेत में सोने के कणों का पाया जाना है। आज तक इस रेत में सोने के कणों के मिलने की सही वजह का पता तो नहीं चल पाया है, परन्तु भूवैज्ञानिकों का कहना है कि नदी का पानी जब कई चट्टानों के बीच से होकर बहता है तो उत्पन्न घर्षण के कारण सोने के कण इसमें घुल जाते हैं। नदी के आस पास के क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासी लोग तल से रेत को छानकर इन सोने के कणों को एकत्रित करते हैं। इस कार्य को कई आदिवासी परिवार पीढ़ियों से करते चले आ रहे हैं, व परिवार का प्रत्येक सदस्य पुरुष, महिला व बच्चे भी इसी कार्य को अपनी अजीविका बनाए हुए हैं।
इस नदी से सोना निकालने के लिए इन लोगों को बहुत ही मेहनत व धैर्यपूर्वक काम करना होता है। एक व्यक्ति दिन भर रेत छानने के बाद मुश्किल से सोने के 2 या 3 कण ही निकाल पाता है अर्थात् एक व्यक्ति एक महीने में सोने के 60 से 80 कण निकालता है। यह कण चावल के दाने के बराबर या उससे थोड़े बड़े होते हैं सोना निकालने वाले एक व्यक्ति को एक कण के 100 रुपये तक मिलते हैं, जबकि बाजार में एक कण की वास्तविक कीमत 300 रुपये या उससे कुछ ज्यादा होती है। आदिवासी इन कणों को इकट्ठा कर स्थानीय व्यापारियों को बेचते हैं। यही उनका एकमात्र व्यवसाय है, जिससे कि वे अपना जीवन यापन करते हैं।
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नंदा नदी की एक सहायक नदी भी है जिसे कर्करी नदी के नाम से जाना जाता है। इस नदी में भी स्वर्णरेखा नदी की भांति सोने के कण पाये जाते हैं और यह भी कहा जाता है कि स्वर्णरेखा नदी में सोने के कण कर्करी नदी से ही बहकर पहुंचते हैं। इस नदी की लम्बाई लगभग 37 किलोमीटर है। यह नदी झारखंड, छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से लगभग 250 किलोमीटर दूर कांकेर जिले के कोटरी संगम घाट से होकर बहती है।
इन दोनों नदियों से सोना निकालने का व्यवसाय नदियों के आस पास रहने वाले आदिवासी परिवारों पर निर्भर करता है। एक व्यक्ति इन कणों को स्थानीय व्यापारियों को बेचकर एक महीने में 5 से 8 हजार रुपये तक कमा लेता है। यहां के स्थानीय आदिवासी परिवारों व अन्य लोगों का कहना है कि आज तक जितने भी लोगों व मशीनों द्वारा नदियों पर शोध किए गये हैं, उनमें से एक भी इस रहस्य का पता नहीं लगा सके कि सोने के कण आखिर जमीन के किस भाग से आते हैं। इतना ही नहीं बल्कि यहां मिलने वाले सोने के कणों के बारे में राज्य सरकार व केन्द्र सरकार दोनों ने ही अपनी नजरें फेरी हुई हैं।
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bahut khoob likhte ho