प्राचीन समय में अगर हमको कहीं जाना होता था तो हम दूसरे लोगों से गंतव्य तक पहुंचने के लिए सहायता मांगते थे। लेकिन आज के इस आधुनिक दुनिया में हमें कहीं भी जाना हो तो तुरंत से अपने स्मार्टफोन में गूगल मैप खोलते हैं और जहां जाना होता है वहां मैप में देखकर आसानी से चले जाते हैं और हम कहां हैं यह भी हम आसानी से देख लेते हैं। यह सब हम ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम(GPS) का इस्तेमाल करके करते हैं।
ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम अमेरिका के द्वारा बनाया गया सिस्टम है जिसमें 24 सेटेलाइट पृथ्वी के चारों ओर लगातार चक्कर लगाते रहते हैं। इस प्रकार हम नेविगेशन सिस्टम का इस्तेमाल कर पाते हैं। लेकिन ISRO की मदद से अब भारत के पास भी खुद का नेवीगेशन सिस्टम है जो कि हमारे लिए बहुत बड़ी बात है। यह जानकर आपको और खुशी होगी कि यह अमेरिका के जीपीएस सिस्टम से काफी बेहतर भी है। आइए आपको विस्तार से बताते हैं भारत के खुद के नेविगेशन सिस्टम NavIC(Navigation with Indian Constellation) के बारे में।
IRNSS यानि कि इंडियन रीजनल नेवीगेशन सेटेलाइट सिस्टम भारत में अमेरिका के जीपीएस सिस्टम को जल्द ही रिप्लेस करने जा रहा है। भारत का यह नेविगेशन सिस्टम यानि कि NavIC अमेरिका के GPS सिस्टम से ज्यादा एक्यूरेसी के साथ आपको लोकेशन दिखाने में समर्थ है। चूंकि अमेरिका का जीपीएस सिस्टम 24 सेटेलाइट,जो कि पूरी पृथ्वी के चारों ओर चक्कर लगाती हैं उनकी मदद से हमको 15 से 20 मीटर की एक्यूरेसी के साथ दिशा दिखाता है।
वहीं भारत का नेविगेशन सिस्टम NavIC 7 सेटेलाइट जो कि पूरी पृथ्वी में सिर्फ भारत को फोकस करती है इस कारण से भारतीय नेवीगेशन सिस्टम 1 से 3 मीटर की एक्यूरेसी के साथ हमको दिशा दिखा सकेगा। हालांकि पुराने स्मार्टफोन में यह सिस्टम उपलब्ध नहीं होगा। भारत का यह नेविगेशन सिस्टम सबसे पहले Xiomi के नए स्मार्टफोन में 2020 से आना शुरू हो सकता है। आपको बता दें कुछ महीने पहले लांच हुए रेडमी नोट 9 प्रो में इसको दिया गया है। लेकिन आने वाले समय में यह लगभग हर नए स्मार्टफोन में हमको मिलने वाला है।
क्यों ज़रूरत पड़ी NavIC की (Why do we need NavIC)?
कारगिल के युद्ध के समय भारत ने अमेरिका से उनकी जीपीएस सिस्टम से कारगिल की स्थिति जानने के लिए मदद मांगी। भारत ने अमेरिका से कारगिल की कुछ सेटेलाइट तस्वीरों की मांग की जिससे भारतीय सेना को मदद मिल सके। लेकिन अमेरिका ने मदद करने के लिए साफ इनकार कर दिया। तभी से भारत अपना खुद का नेवीगेशन सिस्टम बनाने में जुट गया। जो कि अब अमेरिका के जीपीएस सिस्टम से भी बेहतर है।
आपातकालीन स्थिति एवं युद्ध जैसी स्थिति के समय किसी भी देश पर अपना नेवीगेशन सिस्टम हो तो उससे बेहद लाभ उठाया जा सकता है और दुश्मन को समय रहते परास्त किया जा सकता है। भारत खुद का नेवीगेशन सिस्टम रखने वाला दुनिया का चौथा देश है। इससे पहले अमेरिका, रूस एवं चाइना अपना खुद का नेविगेशन सिस्टम बना चुके हैं। इस समय 7 सेटेलाइट की मदद से NavIC हमको दिशा दिखाता है लेकिन भविष्य में 11 सेटेलाइट का इस्तेमाल कर और ज्यादा अच्छी एक्यूरेसी के साथ हमको दिशा दिखा पाएगा। यह पूरे भारत को तो कवर करता ही है इसके अलावा भारत से 1500 किलोमीटर तक के एरिया को कवर करेगा।
भारतीय सरकार ने 2013 में इस प्रोजेक्ट के लिए मंजूरी दी थी। इस पूरे प्रोजेक्ट में लगभग 14.2 बिलियन रुपये की लगात आई है।
NavIC नाम क्यों ?
नाविक का सीधा साधा अर्थ है नाव चलाने वाला। प्राचीन समय में नाविक आसमान में सूरज, चांद अथवा सितारों को देखकर समुंद्र में रास्ता पता लगाते थे और दूसरों को रास्ता दिखाते थे। इसलिए ही इसरो ने भारत के नेवीगेशन सिस्टम का नाम नाविक(NavIC) रखा है जिस का फुल फॉर्म है Navigation with Indian Constellation.
GPS से क्यों बेहतर है NavIC ? (Why navic is better than GPS)
● नाविक जीपीएस से ज्यादा एक्यूरेसी के साथ लोकेशन दिखाता है।
● यह आपकी लोकेशन को जीपीएस से काफी ज्यादा तेज गति से ट्रैक कर सकता है। यानी कि जब आप अपना मोबाइल में इस ऐप को खोलेंगे तो यह तुरंत ही आपकी मौजूदा लोकेशन बता देगा जिसमें जीपीएस को थोड़ा समय लगता है।
● भारतीय सेना एवं अंडरकवर ऑपरेशन के लिए अब हम को दूसरे देशों से मदद मांगने की जरूरत नहीं पड़ेगी।
● भविष्य में और ज्यादा सेटेलाइट की मदद से हमको और बेहतर परिणाम देखने को मिलेंगे।
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