नमस्कार दोस्तों, आज के Blog में हम भगवत गीता के एक श्लोक के बारे में बात करेंगे तथा इस Blog का विस्तार से मतलब समझेंगे और यह भी समझेंगे की क्यों कहा जाता है की हमेशा दुसरो का भला करना चाहिए ! इन सभी सवालो का जवाब आपको इस Blog में मिलेगा …..
लभन्ते ब्रह्मनिर्वाणंमृषयः क्षीणकल्मषा: !
छिन्नद्वैधा यतात्मानः सर्वभूतहिते रत: !!
Labhante Brahma –Nirvanam rsayah Krisa-kalmasah !
Chinna-dvaidha Yatatmanah Sarva-butahite Ratah !!
अर्थात:- जो लोग स्वयं से उत्पन्न होने वाले द्वैत से परे है जिनके मन आत्म – साक्षात्कार में रत है जो समस्त जीवो के कल्याण कार्य करने में सदैव व्यस्त रहते है और जो समस्त पापो से रहित है ,उनको ही मुक्ति मिलती है !
व्यक्ति को जब पता चल जाता है कि पृथ्वी पर सभी वस्तुओ को भगवान ने बनाया है तब ही व्यक्ति को वास्तविक ज्ञान प्राप्त होता है ! और उसके बाद व्यक्ति जो भी कार्य करता है वो सभी के हितो को ध्यान में रख कर करता है ! श्री कृष्ण कहते है कि मानवता के बारे में छोड़ कर केवल अपने बारे में सोचना ही सभी क्लेशो का कारण है तथा मानवता का कल्याण करना ही सबसे बड़ा कल्याण कार्य है!
जो व्यक्ति, समाज में केवल भौतिक कल्याण करने में ही व्यस्त रहता है वो व्यक्ति कभी भी किसी कि भी सहायता नहीं कर सकता है ! क्यूंकि शरीर और मन की कुछ समय की ख़ुशी कभी भी संतोषजनक नहीं होती है व्यक्ति भौतिक वस्तुओ को पाकर केवल कुछ समय खुश रहता है जोकि स्थाई संतुष्टि नहीं होती है !
श्री कृष्ण कहते है कि व्यक्ति को अपने जीवन में कितनी सारी कठिनाइयों को झेलना पड़ता है क्यूंकि वो मुझको भूल गया है ! तथा भौतिक वस्तुओ से ही खुश हो रहा है जबकि उसको आध्यात्मिक सुख पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए तभी व्यक्ति कठिनाइयों का समाधान कर सकता है ! जब व्यक्ति भगवान में सच्ची निष्ठा रखता है तथा अपने आपको भगवान के हवाले कर देता है तब ही व्यक्ति को मुक्ति मिलती है !
वर्तमान समय में हर कोई अपने विषय में ही सोच रहा है इसके बावजूद भी व्यक्ति कभी खुश नहीं रह पाता है क्यूंकि उसके मन में लालच है ! व्यक्ति पहले एक छोटी सी चीज़ कि इच्छा रखता है लेकिन जब वो चीज़ हासिल हो जाती है तब भी संतुष्ट नहीं हो पाता है ! क्यूंकि उस ने पहले से ही और बड़ी चीज़ पाने का लालच आ जाता है तथा ये सिलसिला ऐसे ही आगे बढ़ता जाता है और मनुष्य कभी खुश नहीं हो पाता है ! यहाँ पर मुख्य कारण यह है कि व्यक्ति खुश नहीं है अपने जीवन में, क्यूंकि इंसानो ने भौतिक चीज़ो में ख़ुशी ढूंढने लग गया है तथा अपने ही विषय में हमेशा सोचता रहता है कभी दुसरो कि मदद स्वेच्छा से नहीं करता है ! ऐसा लगता है कि इंसान अपने सामाजिक कर्तव्ये को भूल गया है ! हमारे चारो और बहुत सारे उदहारण है जिससे यह बात साबित होती है कि इंसान केवल आपने बारे में ही सोचता है तभी समाज में इतनी सारी समस्यओं है !
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