Biography of Shri Niwas Ramanujan श्री निवास रामानुजन का जीवन परिचय
भारतवर्ष की इस गौरवशाली भूमि पर कई महान लोगों ने जन्म लिया है। जिन्होंने अपने महान कार्यों से पूरी दुनिया में भारत देश का नाम रोशन किया है। भारत देश ने वैसे तो कई वैज्ञानिक दिये हैं, जिन्होंने विज्ञान के क्षेत्र में अभूतपूर्व कार्य किए। इन्हीं में से एक नाम है श्री निवास रामानुजन अय्यंगर(Shri Niwas Ramanujan )। श्री निवास रामानुजन जी एक महान गणितज्ञ थे, जो कि भारत देश के ही नहीं बल्कि विश्व के गणित विचारकों में से एक थे। श्री निवास रामानुजन जी एक ऐसे प्रतिभा के धनी व्यक्ति थे जिन पर न केवल भारत देश को बल्कि पूरे विश्व को गर्व है। रामानुजन जी ने मात्र 33 साल की उम्र में अपनी विलक्षण प्रतिभा व अद्भुत ज्ञान से गणित के क्षेत्र में बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान दिए हैं, जिसकी वजह से वह पूरे विश्व में एक महान गणितज्ञ के रूप में जाने जाते हैं। तो चलिए आज के इस आर्टिकल में हम आपको महान गणितज्ञ श्री निवास रामानुजन के जीवन के बारे में विस्तार पूर्वक जानकारी देने जा रहे हैं।
श्री निवास रामानुजन का संक्षिप्त जीवन परिचय :
नाम – श्री निवास रामानुजन अय्यंगर
जन्म – 22 दिसंबर 1887
जन्म स्थान – इरोड गांव, कोयंबतूर शहर, तमिलनाडु, भारत
पिता का नाम – श्री निवास अय्यंगर
माता का नाम – कोमल ताम्मल
पत्नी का नाम – जानकी
शिक्षा – कुंभकोणम प्राथमिक विद्यालय
करियर – गणितज्ञ
धर्म – हिन्दू
नागरिकता – भारतीय
मृत्यु – 26 अप्रैल 1920 (33 साल)
मृत्यु का कारण – क्षय रोग
मृत्यु का स्थान – कोडुमंड़ी गांव
श्री निवास रामानुजन अय्यंगर का प्रारम्भिक जीवन :(Early Life Of Shri Niwas Ramanujan )
श्री निवास रामानुजन अय्यंगर का जन्म 22 दिसंबर 1887 को दक्षिणी भारत के मद्रास के तमिलनाडु शहर के कोयम्बतूर जिले के इरोड़ गांव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम श्री निवास अय्यंगर था तथा माता का नाम कोमल तम्मल था। इनके पिता श्री निवास अय्यंगर कोयम्बतूर जिले की ही एक साड़ी की दुकान में क्लर्क व माता कोमल तम्मल एक गृहिणी थीं और इसके साथ ही एक मन्दिर में गायिका भी थीं। जब श्री निवास रामानुजन की आयु 1 वर्ष थी तभी इनका परिवार कुम्भकोणम में आकर बस गया था। श्री निवास रामानुजन का व्यक्तित्व बहुत ही सौम्य व सरल था। उनके व्यवहार से हर कोई प्रभावित हो जाता था। रामानुजन की मां ने सन् 1891 और 1892 में उनके अन्य दो भाई बहनों को जन्म दिया जिनकी बचपन में ही मृत्यु हो गई थी।
सन् 1889 में पूरे जिले में चेचक की बीमारी फैल गई थी, जिसमें जिले के हजारों लोगों की मृत्यु हो गई। रामानुजन भी इस भयंकर बीमारी की चपेट में आ गए परन्तु सौभाग्यवश वह इस बीमारी से शीघ्र ही बाहर निकल आए। रामानुजन अपने परिवार के साथ कुम्भकोणम गांव के सारंगपाणी सड़क के पास अपने पुराने घर में रहते थे परन्तु बाद में वह अपने माता पिता के साथ मद्रास के पास के कांचीपुरम गांव में रहने चले गए।
श्री निवास रामानुजन अय्यंगर की शिक्षा :(Education Of Shri Niwas Ramanujan)
श्री निवास रामानुजन को 1 अक्टूबर 1892 को स्थानीय स्कूल में भेजा गया तथा मार्च 1894 में उन्हें तमिल मीडियम स्कूल में दाखिला दिलाया गया, परन्तु रामानुजन को स्कूल जाना पसन्द नहीं था, इसलिए वह ज्यादातर स्कूल ही नहीं जाते थे, इतना ही नहीं बल्कि उनके परिवार वालों ने उनके लिए एक चौकीदार भी रखा था ताकि रामानुजन रोज स्कूल जा सके। 10 वर्ष तक की उम्र में 1897 नवंबर में इन्होंने अंग्रेजी, तमिल, भूगोल और गणित विषयों से प्राइमरी की परीक्षा उत्तीर्ण की परन्तु आगे जाकर रामानुजन सिर्फ गणित के विषय में अधिक रुचि लेने लगे तथा अन्य विषयों का गम्भीरता पूर्वक अध्ययन नहीं करते थे। रामानुजन को गणित विषय इतना प्रिय हो चुका था कि उन्होंने स्कूल में ही कॉलेज स्तर तक का गणित पढ़ लिया था। इतना ही नहीं बल्कि वह दूसरे विषयों की कक्षाओं में भी गणित ही पढ़ा करते थे जिसका परिणाम यह हुआ कि वह 11वीं कक्षा में गणित को छोड़कर शेष अन्य सभी विषयों में फेल हो गए। इसके बाद उन्होंने सन् 1907 में 12 वीं की प्राइवेट परीक्षा दी जिसमें वह पुनः फेल हो गए।
श्री निवास रामानुजन का गणित के क्षेत्र में अमूल्य योगदान :
श्री निवास रामानुजन ने मैट्रिक कक्षा में स्थानीय कॉलेज की लाइब्रेरी से ‘ए सिनोप्सिस ऑफ एलीमेंट्री रिजल्ट्स इन प्योर एंड एप्लाइड मैथमैटिक्स’ (Synopsis of elementary results in pure and applied mathematics) पुस्तक जो कि जार्ज एस कार्र (George shoobridege carr) द्वारा लिखित है, से प्रभावित होकर गणित पर कार्य करना आरम्भ कर दिया। इस पुस्तक में दिए गए गणित के कुल 5000 फॉर्मूलों को उन्होंने मात्र 16 साल की उम्र में पूरी तरह से अपने दिल और दिमाग में बसा लिया था। 13 साल की उम्र में रामानुजन एस एल लोनी द्वारा लिखित एडवांस ट्रिग्नोमेट्री के मास्टर बन चुके थे। इन्होंने बहुत सारी प्रमेय बनाई। मात्र 17 साल की उम्र में रामानुजन ने बर्नोली नम्बरों की जांच की और दशमलव के 15 अंकों तक एलुयेर कांस्टेंट की वैल्यू की खोज की। सन् 1913 में मात्र 26 साल की उम्र में रामानुजन ने गणित के 120 सूत्र लिखे।
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श्री निवास रामानुजन का प्रोफेसर हार्डी के साथ पत्र व्यवहारता व विदेश गमन :
सन् 1913 में 26 साल की उम्र में रामानुजन ने गणित के 120 सूत्र लिखकर प्रसिद्ध गणित के प्रोफेसर हार्डी को भेजा। पहले तो प्रोफेसर हार्डी ने इनके पत्र पर खास ध्यान नहीं दिया परन्तु बाद में उन्होंने रामानुजन को इंग्लैण्ड बुलाने का फैसला किया। रामानुजन ने पहले तो इंग्लैण्ड जाने से मना कर दिया परन्तु प्रोफेसर हार्डी ने जब उन पर ज्यादा जोर दिया तो वह मान गए। इंग्लैण्ड में रहकर रामानुजन ने बहुत ही कम समय में अपनी प्रतिभा से धाक जमा ली। उन्होंने प्रोफेसर हार्डी के निर्देशन में गणित सम्बन्धित अनेक शोध कार्य किए जो कि सन् 1914 से सन् 1916 तक विभिन्न शोध पत्रों में प्रकाशित हुए। इनकी योग्यता के कारण इन्हें 28 फरवरी सन् 1918 को रॉयल सोसायटी की सदस्यता प्रदान कर सम्मानित किया गया।
वहीं दूसरी ओर इनका दुबला पतला शरीर लन्दन के ठण्डे मौसम व वहां के खान पान को नहीं अपना सका और इन्हें क्षय रोग ने अपनी गिरफ्त में ले लिया। रामानुजन के बिगड़ते स्वास्थ्य को देखते हुए डॉक्टरों ने इन्हें पूर्ण रूप से विश्राम करने की सलाह दी परन्तु उनका गणित के प्रति जुनून उन्हें आराम करने नहीं दे रहा था। यहां तक कि जब वह अस्पताल में भर्ती थे तब प्रोफेसर हार्डी उनसे मिलने आए। प्रोफेसर हार्डी जिस टैक्सी में आए थे उसका नम्बर 1729 था, जो प्रोफेसर हार्डी को बहुत अशुभ लग रहा था। इस पर रामानुजन ने उनसे कहा कि यह तो सबसे छोटी संख्या है प्रोफेसर जिसे हम दो घन संख्याओं के जोड़ से दो प्रकार से व्यक्त कर सकते हैं।
रामानुजन जी की गणितीय प्रतिभा का अन्दाजा हम इसी बात से लगा सकते हैं कि आज भी उनके निधन के 90 सालों बाद तक उनकी बहुत सी प्रमेय अनसुलझी बनी हुई हैं।
श्री निवास रामानुजन अय्यंगर जी की मृत्यु : (Shri Niwas Ramanujan Death)
विदेश में रामानुजन जी के स्वास्थ्य में कोई सुधार न होने पर अन्ततः उन्हें 27 फरवरी सन् 1919 को भारत लौटना पड़ा परन्तु भारत लौटने पर भी उनके स्वास्थ्य में कोई खास सुधार नहीं हुआ और उनकी हालत और भी गम्भीर होती जा रही थी। क्षय रोग ने उन्हें गम्भीर रुप से जकड़ लिया था, उनकी इस बीमारी पर दवाइयों ने भी असर करना छोड़ दिया था। अपनी इस बीमारी से लड़ते हुए अन्ततः उन्होंने 26 अप्रैल सन् 1920 को कावेरी नदी के तट पर स्थित अपने गांव कोडुमंड़ी में मात्र 33 साल की उम्र में अपनी आखिरी सांस ली। इस महान गणितज्ञ का निधन सम्पूर्ण विश्व के लिए अपूरणीय क्षति था।