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चंपारण सत्याग्रह आंदोलन का इतिहास

चंपारण सत्याग्रह आंदोलन का इतिहास
Written by Abhilash kumar

चंपारण सत्याग्रह आंदोलन का इतिहास एंव गांधी जी का योगदान 

मोहनदास करमचंद गांधी जी ने भारत को आजादी दिलवाने एंव लोगों को उनका हक़ दिलवान के लिए अंग्रेजों के खिलाफ अनेक आंदोलन किए थे. अगर भारत में आंदोलन को शुरुआत किसी ने की थी तो वह गाँधी जी ही थे. ऐसे में गाँधी जी का एक आंदोलन ऐसा भी था जिसकी वजह से उनके नाम के आगे महात्मा लगने लगा. आज हम चंपारण सत्याग्रह आंदोलन के इतिहास एंव उस वक्त हुई छोटी-बड़ी घटनाओ के बारें में बताने वाले है और इसमें आप जानोगे की महात्मा गाँधी ने कैसे किसानो को उनका हक़ दिलवाया और किसानो के अंदर एक अच्छी छवि बनाई. आइये जानते है चंपारण सत्याग्रह आंदोलन के बारें में – 

चंपारण सत्याग्रह की शुरुआत एंव गाँधी जी के सहयोगी 
आंदोलन का नाम  चंपारण सत्याग्रह आंदोलन 
आंदोलन की शुरुआत  19 अप्रेल 1917 
कब तक चला  करीब एक साल तक 
किसके लिए किया गया था आंदोलन  किसानो के हित के लिए आंदोलन शुरू किया गया था 
आंदोलन का नेतृत्व करने वाले  महात्मा गांधी एंव ब्रजकिशोर प्रसाद 
आंदोलन के सहयोगी नेता  राजेंद्र प्रसाद, अनुग्रह नरायण सिंह, रामनवमी प्रसाद एंव जेबी कृपलानी जैसे नेता भी शामिल थे.  

 

चंपारण क्या है ?

चंपारण बिहार राज्य का एक जिला है. इस जिला के किसानो की मदद के लिए गांधी जी ने आंदोलन शुरू किया था. यही वजह है गांधी जी के इस आंदोलन का नाम चंपारण सत्याग्रह आंदोलन पड़ा. यहाँ के किसानो से अंग्रेजो ने एक संधि की थी उसका नाम था तिनकठिया संधि था. इसके अंतर्गत किसान को कृषिजन्य भूमि के 3/20वें भाग पर नील की खेती करनी होती थी. इस संधि की वजह किसानो को मजबूर होकर अपने खेतों में नील की कहती करनी पड़ती थी. शुरुआत में इस संधि से फायदा किसानो का ही था क्योंकि चंपारन में नील के अनेक कारखाने थे पर बाद में अनेक रंगो की डिमांड के साथ यह कारखाने बंद होने लगे और नील को बेचना किसानो के लिए मुश्किल हो गया था और यह खेती उनपर बोझ बनती जा रही थी. अंग्रेजो से जब चंपारण के किसानो ने इस संधि को खत्म करने के लिए कहा तो उन्होंने लागान के रूप में बहुत ज्यादा रकम मांगी थी. जो की एक आम किसान देने के लिए असमर्थ था. 

किसानो ने किया विद्रोह 

चंपारण के किसानो पर नील की खेती करने का दबाव बढने लगा इसलिए किसानो ने विद्रोह शुरू किया और इनके इस विद्रोह का नेतृत्व राजकुमार शुक्ला ने किया. राजकुमार की अनेक कोशिशों के बाद अंग्रेज अपनी बात पर अड़े रहे और इसी कारण राजकुमार शुक्ला ने महात्मा गांधी से मिलने का मन बनाया और वह किसानो को आश्वासन देकर गये की वो गांधी जी को अपने साथ जरुर लायेंगे. 

राजकुमार शुक्ला की गांधी जी से मुलाक़ात 

साल 1916 के अंतिम दिनों में राजकुमार शुक्ल एंव संत राउत ने गांधी जी से लखनऊ में मुलाकत की, और उन्हें किसानो की परेशानी बताते हुए बिहार आने के लिए कहा, उस समय गांधी जी भारत की आजादी के आंदोलन में शामिल थे इसलिए उन्होंने कहा की वह बिहार अभी नहीं आ सकते. पर राजकुमार शुक्ला अपनी बात पर अड़े रहे और उन्होंने गांधी जी को बिहार आने के लिए मना ही लिया. इतना ही नहीं शुक्ला और राउत दोनों कोलकत्ता दौरे में भी गांधी जी के साथ रहे और वहां से सीधे बिहार गांधी जो को साथ लेकर आये. 

गाँधी जी के चंपारण आने पर क्या हुआ ? 

10 अप्रेल 1917 को गांधी जी ने ब्रज किशोर प्रसाद, राजेन्द्र प्रसाद, नारायण सिन्हा एंव रामनाथवी प्रसाद ले साथ जैसे ही चंपारण बिहार में कदम रखा, वहां के अंग्रेज अधिकारीयों ने उनपर बैन लगा दिया की वह बिहार में अगर रहे तो उन्हें जेल भी हो सकती है.  गाँधी जी ने उनके इस बैन को ना मानते हुए बिहार में ही रहने का मन बनाया और यहाँ पर किसानो से मिले. 

गांधी जी को किया गिरफ्तार 

गांधी जी ने अंग्रेज अधिकारीयों की बात को नहीं माना और अधिकारियो ने गांधी जो की गिरफ्तार करवा दिया. उन्हें जेल लेजाया गया और कहा गया की तुम चंपारण छोड़ दो तो तुम्हारे उपर लगे आरोप खत्म कर दिए जायेंगे. ऐसे में गांधी जी ने कहा की चंपारण मेरा घर है और मैं यहीं पर अपने लोगों की सेवा करूंगा. गाँधी जी ने कहा की अगर उनकी बात नहीं मानी गई तो वह सत्याग्रह करेंगे और यहीं से उन्होंने अपने पहले सत्याग्रह आंदोलन की शुरुआत की, ऐसे में जब किसानो को गांधी जी के जेल जाने का पता चला तो उन्होंने आंदोलन करना शुरू कर दिया. अंग्रेजो को गांधी जी की ताकत का पता चल गया और उन्होंने गांधी जी को बिना किसी शर्त के छोड़ दिया. 

‘तिनकठिया’ संधि को किया खत्म 

जुलाई 1917 में अंग्रेजो द्वारा आयोग गठन किया गया और इसमें सदस्य के रूप में गांधी जी को बनाया गया. गांधी जी के प्रयास से ‘तिनकठिया पद्दति’ को खत्म ही नहीं किया गया बल्कि किसानो की 25 प्रतिशत वसूले गये धन का वापस भी दिलवाया. ऐसे में गांधी जी द्वारा चलाए गये ‘ चंपारण सत्याग्रह आंदोलन’ में एक बड़ी सफलता मिली और किसानो के बिच गांधी जी की एक प्रभावी छवि बनी और पुरे देश में गाँधी जी के ‘चंपारण सत्याग्रह आंदोलन’ की चर्चा होने लगी. 

चंपारण सत्याग्रह आंदोलन का इतिहास
गांधी जी द्वारा चंपारण में स्कूलों का निर्माण 

गाँधी जी द्वारा निर्माण करवाए गये स्कूल  साल 
बरहरवा लखनसेन 1917 
पश्चिम चंपारण  30 नवंबर 1917 
मधुबन  17 जनवरी 1918 

 

गांधी जी ने यहाँ की शिक्षा व्यवस्था को ठीक करवाते हुए यहाँ पर स्कूल निर्माण शुरू करवाया. उन्होंने सबसे पहले बरहरवा लखनसेन गांव में स्कूल बनवाया उसके बाद उन्होंने पश्चिम चंपारण एंव मधुबन में भी स्कूल बनवाये थे. गांधी जी के स्कुल निर्माण कार्य में जवाहरलाल नेहरु ने भी खूब मदद की थी.   

गाँधी जी को महात्मा की उपाधि भी यहीं से मिली 

गाँधी जी के इस आंदोलन की सफलता पर रविंदरनाथ टैगोर ने गांधी जी की तारीफ करते हुए उन्हें महात्मा की उपाधि दी. उसी के बाद गांधी जी के नाम के आगे महात्मा लगने लगा और पूरी दुनिया में गाँधी जी को महात्मा गांधी कहा जाने लगा. इतना ही नहीं संत राउत ने इसी आंदोलन के दौरान गांधी जी को ‘बापू’ शब्द से संबोधित किया था. इस आंदोलन को आप गांधी का सबसे प्रभावशाली एंव ताकतवर आंदोलन भी कह सकते हो. क्योंकि इसी आंदोलन के बाद अंग्रेजो को महात्मा गांधी की ताकत का अंदाजा हुआ था एंव पुरे भारत में गांधी जो के अच्छी पहचान मिली थी. 
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