Biography

झांसी की रानी लक्ष्मी बाई | jhansi ki rani

laxmi-bai-jhansi-ki-rani
Written by Abhilash kumar

आज हम एक ऐसी महिला योद्धा के बारे में बात करेंगे जिसने न ही सिर्फ भारत के पहले स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया बल्कि उन्होंने राज्य के लिए अपनी जान तक निछावर कर दी ! जिनका नाम है रानी लक्ष्मी बाई! इस Blog में रानी लक्ष्मी बाई के बारे detail से लिखा गया है तथा इसको पूरा पढ़ने पर आपको भी रानी लक्ष्मी बाई के बारे में बहुत कुछ पता चल जायेगा !

झांसी एक ऐसा इलाका है, जो कि एक रानी के नाम से बहुत ज्यादा प्रसिद्ध है और उस रानी का नाम है रानी लक्ष्मी बाई ! जिन्होनो जब तक जीवित रही,तब तक उन्होंने अपने राज्य को अंग्रेजो के हवाले नहीं किया और एक ऐसी महिला जिन्होंने भारत के पहले स्वतंत्रा संग्राम में भाग लिया ! लक्ष्मी बाई जब तक जीवित थी तब तक कोई भी अंग्रेज़ अधिकारी उनको पकड़ नहीं सका !
लक्ष्मी बाई का जन्म 19 नवंबर 1828 को वाराणसी में हुआ तथा जन्म से लक्ष्मी बाई ब्राह्मण थी !

झांसी की रानी का बचपन

इनके बचपन का नाम मणिकर्णिका था तथा लोग प्यार से इनको मनु कहते थे ! इनके पिता का नाम मोरोपंत ताम्बे तथा माता का नाम भागीरथी सप्रे था ! जब मनु 4 साल की थी तब ही उनकी माता जी का देहांत हो गया था तथा इसके बाद उनके पिता मनु को अपने साथ पेशवा बाजीराव द्वितीय के दरबार में लेकर गए, जहा मनु से सभी प्यार करने लगे तथा लक्ष्मी बाई को दरबार में सब छबीली कहते थे जहा पर उनको तरह तरह की शिक्षा दो गयी तथा इनके कुछ शौक भी थे जैसे घुड़सवारी करना और तलवार बाजी करना !

लक्ष्मी बाई का विवाह 1842 में झाँसी के राजा गंगधार राव नेवालकर जी के साथ हुआ तथा शादी के बाद वो झाँसी चली गयी जहा उनका नाम लक्ष्मी बाई पडा ! 1851 को उनको एक पुत्र हुआ जिसका नाम दामोदर राव रखा गया तथा जिसकी मृत्यु मात्र 4 महीने में हो गयी थी जिसके कारण शीघ्र ही गंगाधर राव की हालत ख़राब होती चली गयी इसके लिए मनु ने एक पुत्र को भी गोद ले लिया जिसका नाम आनंद राव था लेकिन बाद में उसका नाम दामोदर राव रख दिया गया लेकिन इसके बावजूद नवंबर 1853 में गंगाधर राव जी का देहांत हो गया !

Doctrine of Lapse

इस समय गवर्नर जनरल लार्ड डलहौज़ी थे जिन्होंने एक नीति बनाई थी जिसको Doctrine of Lapse कहते है जिसके अनुसार अगर कोई राजा का कोई पुत्र नहीं होता तो उसकी मृत्यु के बाद उसके साम्राज्य को ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के साम्राज्य में मिला लिया जायेगा तथा शाही परिवार को अपना खर्च चलाने के लिए पेंशन दी जाएगी ! बहुत सारे इलाके को Lapse के नियम के अनुसार ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपने साम्राज्य में मिला लिया और गंगाधर राव के देहांत के बाद झांसी को भी ब्रिटिश साम्राज्य में मिलाने की कोशिश की गयी !

मैं झाँसी नहीं दूंगी

लेकिन रानी ने अंग्रेज़ो से कहा कि उनके गोद लिए पुत्र को उत्तराधिकारी मान ले लेकिन अंग्रेज़ो ने रानी की एक भी न सुनी ! रानी लक्ष्मी बाई इंग्लैंड तक गयी वह पर मुकदमा भी किया लेकिन उसका कोई समाधान नहीं निकला ! अंग्रेज़ो ने रानी को झाँसी खाली करने तथा 60000 रुपए पेंशन देने का वादा किया ! 7 मार्च 1854 को एक सरकारी आदेश के द्वारा रानी को झाँसी को खाली करने का आदेश दिया लेकिन रानी ने कहा कि मैं झाँसी नहीं दूंगी और अंग्रेज़ो के खिलाफ बगावत कर दी !
रानी के अंग्रेज़ो से लोहा लेने के लिए अपनी एक सेना भी गठित की जिसमे स्त्री और पुरुष दोनों शामिल थे मार्च 1854 में अंग्रेज़ो ने सर हयु रोज़ के नेतृत्व में झाँसी पर हमला किया ! जहा पर 2 हफ्ते तक लड़ाई चली तथा रानी को झाँसी का किला छोड़कर भागना पड़ा ! कुछ समय बाद 10 मई 1857 का विद्रोह हो गया ( इसमें रानी भी शामिल हो गयी ) जिसके कारण अंग्रेज़ो का ध्यान इस विद्रोह पर चला गया तथा झाँसी को उन्होंने छोड़ दिया और रानी को दुबारा से झाँसी पर आधिपत्य मिल गया लेकिन अंग्रेज़ो ने विद्रोह के दमन के बाद 1858 में दुबारा से झाँसी पर कब्ज़ा कर लिया और रानी को दुबारा से झाँसी को छोड़ कर भागना पड़ा ! अब की बार रानी कल्पी गयी जहा वो पेशवा से मिली !

रानी की मृत्‍यु

अंग्रेज़ो ने कल्पी पर हमला किया लेकिन रानी ने अबकी बार अंग्रेज़ो का डट के सामना किया और अंग्रेज़ो को पीछे पड़ा ! इसके बाद दुबारा से अंग्रेज़ो ने कल्पी पर हमला किया लेकिन अबकी बार रानी की हार हुई ! इसके बाद रानी ने पेशवा की मदद से ग्वालियर पर हमला कर दिया जहा पर रानी की जीत हुई तथा ग्वालियर को पेशवा को सौप दिया गया !
17 जून 1858 को रानी ने किंग्स रॉयल आयरिश के खिलाफ लड़ाई लड़ी इस लड़ाई में रानी वीरता के साथ लड़ी लेकिन युद्ध करते समय बीच में नाला आ गया जिसको उनका नया घौड़ा पार नहीं कर सका जिसके कारण वह अंग्रेज़ो से घिर गई और अंग्रेज़ो ने रानी को बहुत ज्यादा ज़ख़्मी कर दिया क्यूंकि रानी ने आदमी का वेश धारण कर रखा था जिसके कारण अंग्रेज़ उनको पहचान नहीं सके ! रानी को वहा से गंगादास मठ से जाया गया जहा पर 18 जून 1858 को उनका देहांत हो गया !

About the author

Abhilash kumar

Hello Friends this is Abhilash kumar. A simple person having complicated mind. An Engineer, blogger,developer,teacher who love ❤️ to gather and share knowledge ❤️❤️❤️❤️.

Leave a Comment

13 Comments

satta king chart